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क्या यही है हमारे सपनों का भारत ?(जागरण जंक्शन फोरम )

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vipin 1n
क्या यही है हमारे सपनों का भारत ?
कुछ लिखने से पहले तो मैं उन सभी महान आत्मायों को शत-शत नमन करता हूँ जिनके महान बलिदान से आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र में साँस ले रहे है उनके योगदानों के बारे में लिखना, सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है उन्होंने जो कुछ किया वो शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है……
हम भारत वासियों के लिए यह आजादी एक सदी से भी ज्यादा दमनकारी शासन के बाद अगस्त 1947 में हासिल हुई थी। 1947 में जब हिंदुस्तान आजाद हुआ तो हमने यही सोचा कि हम अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए हैं तो अब देश हमारा है और अब यहां के ख्वाब भी हमारे हैं लेकिन वक्त गुजरता जा रहा है और देश नई चीजों में जकड़ता जा रहा है लूट, भ्रष्टाचार, दंगे, सांप्रदायिक तनाव बांटने वाले बयान दिलों को दहलाकर रख देते हैं अब इन हालातों में स्वतन्त्रता दिवस मनाने को क्या कहेंगे लेकिन फिर भी हमारे लिए बहुत बड़ा त्यौहार है और इसे हम सब मिलकर जश्न की तरह मानते है देश एक बार फिर 15 अगस्त 2014 दिन शुक्रवार को स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है।
विदित हो कि हमारे राष्ट्रध्वज के तीनो ही रंग हम सब के लिए प्रेरणा के प्रतीक है। स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर तिरंगे के रंगों के जरिये ये दर्शाया जाता है कि ये हमारे लोकतंत्र, न्याय और खुशहाली का प्रतीक हैं और प्रगति पथ पर हमारा देश सदा अग्रसर है।
अब हमें जानना ये है कि हमें 15 अगस्त को ही आजाद क्यों किया गया ? आजाद भारत के तिरंगे का इतिहास बहुत ही रोचक है भारत की आजादी के बाद तक जम्मू-कश्मीर रियासत के सरदार इस बात का निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि उन्हें भारत के साथ मिलना चाहिए या पाकिस्तान के साथ। अंतत अक्टूबर 1947 में जम्मू-कश्मीर रियासत के सरदार ने अपनी रियासत को भारत का हिस्सा बनाने पर अपनी रजामंदी दे दी और देश आजाद हो गया।
देश में एक बार फिर स्वतंत्रता दिवस या यूँ कहें कि आजादी के दिन के अवसर पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होगा फिर बच्चे खुश होकर अपने नन्हे-नन्हे हाथों में झंडा लिए हुए शान से खड़े होंगे। इन नैनिहालों से देश का भविष्य है लेकिन ये बच्चे इस बात से वाकिफ नहीं कि बड़े होकर जिस आजादी का जश्न मनाते है सही मायने वो देश आजाद है ही नही।ं देश को स्वतंत्रत हुए 68 वर्ष हो गये हैं और इस समय देश की स्थिति इतनी विचित्र है कि धनपतियों की संख्या बढ़ने के साथ गरीबी के नीचे रहने वालों की संख्या उनसे कई गुना बढ़ी है आर्थिक उदारीकरण होने के बाद तो यह स्थिति हो गयी है कि उच्च मध्यम वर्ग अमीरों में आ गया तो गरीब लोग अब गरीबी की रेखा के नीचे पहुंच गये हैं विकास दर के साथ-साथ अपराध दर भी तेजी से बढ़ी है कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा देश आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरोधाभासों के बीच सांसे ले रहा है स्थिति यह है कि अनेक लोग तो 68 वर्ष पूर्व मिली आजादी पर ही सवाल उठा रहे हैं। हम कभी ये क्यों नहीं देखते कि हम आज भी अधीन है हम आजाद हुए ही कहाँ हैं पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और आज इन भ्रष्ट नेताओं के गुलाम हैं लेकिन फिर भी बस एक झंडा फहराया, राष्ट्रगान गाया, दो नारे लगाए, एक भाषण दिया और मान लिया कि मना ली वर्षगाँठ स्वाधीनता की। लेकिन क्या इस सबसे हमारे देश में उत्पन्न विभिन्न परिस्तिथियां अनुकूल हो गयी। देश हर और से बिखरने के कगार पर पहुँच रहा है जरा गौर कीजिये क्या वाकई में हमारा मुल्क आजाद है। क्या यहाँ हर कोई चैन की सांस ले रहा है। क्या हर किसी की बुनयादी जरूरतें पूरी हो रही है। क्या बेगुनाहों के साथ इंसाफ हो रहा है, मजदूरों को उचित मजदूरी मिल रही है, और न जाने ऐसे ही कितने सवाल है जिसका सीधा सा जवाब है नहीं। इस देश में अमीर, अमीर ही होता जा रहा है और जो गरीब है वो खुद और उसके बीवी बच्चे भी दो वक्त की रोटी के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं। आज जबकि देश आजाद हो गया है तो आज भी इन्हें रोटी नसीब नहीं हो रही है। इन गरीब बच्चों के माँ बाप पहले अंग्रेजों की गुलामी करते थे अब बड़े जमींदारों की गुलामी करते हैं। बेरोजगारी और फिर उसकी वजह से गरीबी ने लोगों का जीना हराम कर रखा है। आए दिन ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं की फलां-फलां गाँव में फलां व्यक्ति ने गरीबी से तंग आकर मासूम बच्चो सहित खुद की जान दे दी। हद तो यह है की जिस देश में हम आजादी की खुशी मानते हैं वहाँ भूख से भी लोग मर रहें हैं। जरा सोचिए जिस देश में हजारों टन अनाज रखे-रखे सड़ जाता है उस देश में भूख से किसी की मौत हो जाना उस पूरे देश के लिए शर्म की बात नहीं तो और क्या है ?
आज देश मना रहा है 68 वां स्वतंत्रता समारोह, लेकिन आम आदमी आज अपने आप को फिर गुलामी कि जंजीरों में बंधा पा रहा है 68 वर्षो बाद फिर से देश, आजादी कि जंग लड़ रहा है क्यूंकि लोकतंत्र को सफेदपोशों ने अपनी पुरखों कि जायदाद समझ लिया है इस लोकतंत्र को वो अपने हिसाब से अपने भले के लिए इस्तेमाल कर रहें है प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार इन सभी के श्वेत कपडे काले पड़ चुकें है, इसीलिए आवाम की तकलीफों की आवाजें इन्हें चुभने लगीं हैं हमारे देश में योजनाओं भी चलतीं हैं तो कागजों पर या फिर उन्हीं लोगों को लाभ मिलता है जो दाव पेंच में माहिर होते है। गरीबों का नाम बी.पी.एल में नहीं है और जिनकी आय हजारों में है वो बी.पी.एल के मजे ले रहे हैं। गरीब आदमी भुखमरी से मर रहा है और एक लीटर मिटटी के तेल के लिए तरस रहा है और अमीरों के यहाँ तेल के टैंक भरे पड़े हैं। किसान खुदकुशी करते रहें, प्रसव के दौरान मामूली दवा की कमी से महिलाओं के मौत होती रहे, बच्चे स्कूल के बजाए चाय की दूकान पर काम करते रहें, लाखों लोग जिंदगी भर फूटपथ पर सोने को मजबूर हों तो ऐसे में क्या ऐसी आजादी को मनाना सफल है क्या ? इस छोटे से प्रश्न ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की वर्तमान संदर्भ में वाकई 15 अगस्त का मतलब क्या है ?
देश में बढ़ते भ्रष्टाचार, अराजकता, आतंकवाद, भुखमरी, बेरोजगारी, अस्वास्थ्य की स्थित और गरीबी की वजह से अनेक लोगों के लिये 15 अगस्त की आजादी एक भूली बिसरी घटना होकर रह गयी है। आजादी के इन 68 वर्षों में हर परिवार में कई पीढि़यों ने सांस ली होगी अगर देखा जाए तो दिन पर दिन पीढ़ी दर पीढ़ी ऐतिहासिक घटनाओं की स्मृतियां फीकी पड़ती जा रहीं हैं अगर 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस और 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस हर वर्ष औपचारिक रूप से मनाया जाए तो कुछ वर्षों बाद एक दिन यह स्थिति आ सकती है कि इसे याद रखने वालों की संख्या कम होगी या फिर इसे लोग औपचारिक मानकर इसमें अरुचि दिखायेंगे ! क्योंकि सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस स्वतंत्रता से भारत का औपचारिक रूप से बंटवारा हुआ जिसने इस देश के जनमानस को निराश और भ्रमित किया अनेक लोगों को अपने घरबार छोड़कर शरणार्थी की तरह जीवन बिताना पड़ा शुरुआती दौर में विस्थापितों को लगा कि यह विभाजन क्षणिक है पर कालांतर में जब उसके स्थाई होने की बात सामने आयी तो स्वतंत्रता का बुखार भी उतर गया। जो विस्थापित नहीं हुए उनको देश के इस बंटवारे का दुःख होता है। विभाजन के समय हुई हिंसा का इतिहास आज भी याद किया जाता है। यह सब भी विस्मृत हो जाता अगर देश ने वैसा स्वरूप पाया होता जिसकी कल्पना आजादी के समय दिखाई गयी थी। आज आजादी के मायने बदल गये हैं क्योंकि आज के दौर में हमारे देश के नेता हमेशा देर से ही आधा-अधूरा कार्य करते है, और कई गुना ज्यादा पैसा खा जाते है, इस देर की वजह से ही आज पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर रखा है और उसमे से कुछ हिस्सा चीन को तोहफे मे दे दिया है और अब चीन के मामले में भी यही कर रहे हैं तो क्यों ना सबसे पहले इन नेताओं को इस सरकार को आवाम द्वारा दंड मिलना चाहिए। दरअसल आज राजनीतिक पार्टियों एवं गुंडो, माफिया और उद्योगपतियों का वर्चस्व हो गया है जो प्रत्यक्ष या परदे की पीछे से देश और जनता को लूटने में लगे हुये हैं सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो ये है कि इनकी लूट थमने का नाम ही नहीं ले रही है। जब इन नेताओ को चुनाव लड़ना होता हैं तो इनका मैनेजमैंट कमाल का होता हैं, हर गांव में कार्यकर्ता भेजते हैं और कार्यकर्ता ही क्यों खुद भी औंधे मुंह जाकर हाजिरी देते हैं। पर्चे बटवाते हैं। दारु पंहुचाते हैं, नोट बटवाते हैं, कंबल बटवाते है, लंगर लगवाते हैं यह सिलसिला लगभग महीने भर तो चलता ही है, हर गांव की पल-पल की खबर रखते हैं, पार्टी फंड से पैसा जाता हैं पर आज उन्ही गावों में आपदा आ रखी हैं तो कोई खबर ही नहीं है। ऊपर से चील और गिद्धों की तरह् हवाई दौरा करते हुए निकल जाते है फिर टी.वी पर मुस्कराते हुए ये कहते नजर आते हैं कि हालात ठीक हैं हमने सब ठीक कर दिया है राहत सामग्री भेजी जा रही है। कभी-कभी तो मातृभूमि की रक्षा के नारे की गूंज इतनी तेज हो उठती है कि सारा देश खड़ा होता है. तब ऐसा लगता है कि देश में बदलाव की बयार बहने वाली है पर बाद में ऐसा होता कुछ नहीं है. वजह साफ है कि राष्ट्र या मातृभूमि की रक्षा नारों से, तलवारें लहराने या हवा में गोलियां चलाने से शत्रु परास्त नहीं होते। सरकार को चाहिए देश की रक्षा और देश की खुशहाली बरकरार रखने के लिए मुस्तैदी बरते. वरना अंत बड़ा ही भयावह होगा देश के विकास का देश के भविष्य का। कहने को हमारा देश आजाद है पर कोई बताये कि कैसे है ?
ये कैसी आजादी है जो सियासत की भेंट चढ़कर अपनी आवाज खो चुकी है।….

विपिन शर्मा
सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन

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