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जब गण गौण होता गया तो तंत्र हावी हो गया…

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जब गण गौण होता गया तो तंत्र हावी हो गया…

इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़ के पूरे परिवार की ओर से आप सभी को नवरात्र की हार्दिक शुभकानाओं के साथ इस पर्व पर आप सभी से कुछ कहना चाहता हूँ और आशा करता हूँ कि देश के गंभीर मसलों को समझते हुए और साथ ही देश की प्रगति, देश की सुरक्षा और देश हित में कार्य करते हुए आप इनके प्रति जागरूक होंगे। डा.भीमराव अम्बेडकर बाबा साहेब की अध्यक्षता में बनाया गया भारतीय संविधान 395 अनुच्छेदों और 8 अनुसूचियों के साथ दुनिया में सबसे बड़ा लिखित संविधान था जो आज और भी विस्तृत हो चुका है। 26 जनवरी, 1950 को संविधान के लागू होने के साथ सबसे पहले डा.राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी और इसके बाद राष्ट्रपति का काफिला 5 मील की दूरी पर स्थित इर्विन स्टेटडियम पहुंचा जहां उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। और तब से ही इस दिन को राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाया जाता है। किसी भी देश के नागरिक के लिए उसका संविधान उसे जीने और समाज में रहने की आजादी देता है। लेकिन जिस गणतंत्र ने हमें अभिव्यक्ति की आजादी, कहीं भी रहने और घूमने की आजादी और अन्य अधिकार दिए थे उसे हम याद ही नहीं रख पाए। कहने का तात्पर्य है कि आज लोग अपने अधिकारों के लिए तो लड़ते हैं लेकिन अपने कर्तव्यों से दूर भागते हैं। और यही वजह है आज इतने सालों बाद भी देश गणतंत्र होने के बावजूद भ्रष्टाचार, महंगाई और सामाजिक बेडि़यों में जकड़ा हुआ है। देखा जाए तो मौजूदा दौर में सत्ता की लड़ाई इस कदर हावी हो गई है कि इसके सामने सब कुछ बौना नजर आने लगा है। आम आदमी की क्या जरूरतें हैं, इस पर किसी का ध्यान नहीं है, बस सब के सब अपना वोट बैंक मजबूत करने के काम में लगे हुए हैं। इस आपाधापी में आम भारतवासी की उम्मीदें, आम भारतवासी की भावनाएं कितनी आहत हो रही हैं, इस दिशा में सोचने की किसी को फुर्सत ही नहीं है। हाँ बस एक बड़ा बदलाव अवश्य हुआ है और वो ये है कि गण गौण होता जा रहा है और तंत्र हावी हो गया है। ये इतना हावी हो गया है कि आम आदमी को इसमें घुटन होने लगी है। गणतंत्र के असली मायने गुम हो गए हैं। इन्ही कारणों वश व्यक्ति का सारा गुस्सा राष्ट्रीय पर्व न मना कर या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान कर ठंडा कर लिया जाता है। क्यों नहीं हम लोग जो कुछ गलत है उसको बदलने का प्रयास करे, लेकिन यह तो हम लोग शायद ही कभी करते है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि केवल आलोचना से कुछ हासिल नहीं होगा। क्योंकि विरोध का अधिकार भी उसी का होता है जो मुद्दे के पक्ष मे हो या विपक्ष मे हो। जो बाहर बैठे बहस का मजा लेते है। उन्हें विरोध से क्या मतलब ?
आप सरकार से रुष्ट हो सकते है पूरा अधिकार है आपको, लेकिन राष्ट्रीय पर्व से रुष्ट होना और उसका असम्मान करना, ये केवल आपकी मूर्खता ही है। आप विरोध सरकार का कीजिये। कौन रोकता है आपको। सीधा राष्ट्र और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान पर उतर आना कहाँ की समझदारी है। ऊपर से तुर्रा यह कि इन सब के बाद भी आप खुद को देश भक्त कहलवाना चाहते है। चलिए खैर अब भी समय है सही दिशा चुनिए और लोगों का सही मार्गदर्शन करिए।
विपिन शर्मा
सम्पादक

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