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बापुराव ताजणे महाराष्ट्र स्थित वाशिम जिले के कलांबेश्वर गांव में मजदूरी कर अपना व परिवार का पेट पालते हैं। दलित होने के कारण बापुराव की पत्नी को ऊंची जाति के पड़ोसियों ने जब अपने कुएं से पानी नहीं लेने दिया तो बापुराव ताजणे को बेहद तकलीफ हुई। दिल ही दिल में यह बात उन्हें चुभने लगी। उस रात उन्हें नींद नहीं आई मानो दिल में कोई टीस चुभ रही थी। सुबह-सवेरे उठकर वह बाहर निकले और खुद ही कुआं खोदना शुरू कर दिया।
अचानक यह सब देख सभी सकते में पड़ गए। पड़ोसी ही नहीं, परिजन भी उनका मजाक उड़ाने लगे। लोगों को उनका यह जुनून पागलपन सा लगा। सही भी था, इतने पथरीले इलाके में भला कुआं खोदकर पानी निकालने की बात… किसे यकीन होगा! वह भी तब जब उस इलाके में पहले से ही आसपास के तीन कुएं और एक बोरवेल सूख चुके हों।
लेकिन कहते हैं न, जिद और जुनून हो तो कठिन से कठिन काम भी मुश्किल नहीं रह जाता। बापुराव रोजाना 8 घंटे की मजदूरी के बाद करीब 6 घंटे का समय कुआं खोदने के लिए देते। महज 40 दिनों में बापुराव ने बगैर किसी की मदद के अकेले ही कुआं खोदकर पानी निकाल दिया।
उन्होंने कभी किसी की बात का जवाब मुंह से नहीं दिया, लेकिन उनके काम ने सबका मुंह हमेशा के बंद कर दिया। खास यह है कि अमूमन एक कुआं खोदने में चार-पांच लोगों की जरूरत पड़ती है, लेकिन कुआं खोदने का कोई अनुभव न होने के बावजूद बापुराव ने अकेले अपने दम पर यह मुश्किल काम आसान कर दिखाया।
यह उनकी ऊंची सोच और बड़प्पन ही तो है कि आज बापुराव ऊंची जाति के उन पड़ोसियों का नाम भी बताने को राजी नहीं, जिन्होंने उस रोज उनकी पत्नी को पानी देने से इनकार कर दिया था। वह कहते हैं, “मैं गांव में किसी भी तरह का खून-खराबा या लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहता। मुझे ऐसा लगता है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा क्योंकि हम दलित हैं। हां, उस दिन मैं बहुत दुखी था, जिस दिन यह घटना हुई थी, लेकिन अब उनके लिए मेरे मन में कोई द्वेष नहीं है।”
पुराने दिनों को याद करते हुए बापूराव आगे कहते हैं, “पत्नी को पानी न दिए जाने के बाद मैंने किसी से कुछ न मांगने की कसम खाई और मालेगांव जाकर कुआं खोदने के औजार ले आया। मैंने खुदाई चालू कर दी। खुदाई शुरू करने से पहले मैंने भगवान से प्रार्थना की। आज ऊपरवाले का शुक्रगुजार हूं कि मुझे सफलता मिली।”
vipin sharma
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